Thursday, 9 June 2011

'रामदेवलीला मैदानाचे उत्खनन'- एक अहवाल ( ई. स . ३०२२)


इ .स . ३०२२  

नुकत्याच  भारतीय  पुरातत्त्व  खात्याने  दिलेल्या  निर्देशानुसार  दिल्ली  येथील   रामदेवलीला मैदानाचे  उत्खनन  हाती  घेण्यात  आले आहे . या  उत्खननात  काही  धक्कादायक  बाबी  समोर  आल्या  आहेत . उत्खननातून   सापडलेले  पुरावे  त्या  काळच्या  समाजव्यवस्थेवर  ( पुराव्या  अंती  तिला  'व्यवस्था'  म्हणण्यापेक्षा  'अव्यवस्था'  म्हणणेच  अधिक  योग्य  होईल )  चांगलाच  प्रकाश  टाकतात .
साधारणतः  इ .स . २००० -२०७०  च्या  आसपास  इथे  लोकशाही  नावाची  गूढ  शासन -प्रणाली  अस्तित्वात   असावी  असा  शास्त्रज्ञांचा  कयास  आहे . सुरुवातीला  तर  काही  पुरातत्त्व्वेत्त्यांच्या  मते  'लोकशाही'  हा  शासनप्रकार नसून  तो  एक  खाद्यप्रकार  होता . कारण  त्या  काळी  बालुशाही , शाही  पनीर ,शाही कुर्मा  इत्यादी   नामसाधर्म्य  असलेले  खाद्यप्रकार  अस्तिवात  होते . तथापि  नवीन  संशोधनांती  हे  मत  खोडून  काढण्यात  आलेले आहे .
लोकशाही  म्हणजे  'लोकांचे,  लोकांसाठी,  लोकांनी  चालवलेले  राज्य'  असे  ते लोक  मानीत . तथापि  त्याचा  नेमका  अर्थ  काय  हे  त्या  लोकांनाही  नीट  कळलेले  नसावे . त्याकाळी  आपल्यातूनच  एखाद्याला  नेता  म्हणून  निवडून  देण्याची  प्रथा  असे .राजकारणात  जाण्यासाठी  कुठल्याच  पात्रतेची  आवश्यकता  नसे . किंबहुना  ज्याला  दुसरे  कुठलेच  उद्योग  येत  नसत  अशाच   व्यक्ती  त्याकाळी  राजकारणात  जात . असे  निवडून  गेलेले  सर्व  लोक  देश  चालवायला  घेत .
निवडणुकात  मते  देण्यासाठी  पैसे  घेण्याची  चाल  त्याकाळी  रूढ  होती .लोक  आधी  निवडून  देत  आणि  मग  आपल्याच  प्रतिनिधींना  शिव्या  घालीत . ते  असे  का  करीत  याचे  कारण  'नेत्यांनी  केलेला  भ्रष्टाचार'  असे  संशोधनांती  आढळून  आलेले  आहे . भ्रष्टाचार  म्हणजे  त्या  काळी  रूढ  असलेली  आणि  प्रतिष्ठीत  लोकांनीच  करावयाची  एक  धाडसाची  बाब  असे . सामान्य  लोक  काबाडकष्ट  करून  पैसे  मिळवीत .'प्रामाणिकपणा'  हा  गुण  त्यांच्या  अंगी  असे .(तथापि  हा  सद्गुण  की  दुर्गुण  याबद्दल  शास्त्रज्ञांमध्ये  मतभेद  आहेत ). काही  तज्ञांच्या  मते  'पैसे  घेऊन  मत  टाकणे'  हाही  भ्रष्टाचाराचाच एक प्रकार आहे. मग  हे   लोक  आपल्या  नेत्यांना  का  शिव्या  घालीत ? त्याचे  कारण  म्हणजे  या   लोकांचा  मेंदू  तेवढा  विकसित  नव्हता . तथापि  त्याकाळीसुद्धा  अत्यंत  विकसित  बुद्धिमत्तेचे  लोक  राजकारणात  असल्याचे  पुरावे  आहेत . ए. राजा , कानिमोळी  , हसन अली , ह्या  लोकांना  गतवर्षीच International  Institute of Intellectual Sciences या  संस्थेने  आईन्स्ताईन, न्यूटन , दा  विन्ची  प्रभृतीच्या बरोबरीचे  स्थान  दिले  आहे . कारण  ही  मंडळी  कुठलेच  कष्ट  न  करताही  अमाप  पैसा  जमवण्याचा  चमत्कार  करू  शकत . त्याकाळी  पैशाचे  दोन  प्रकार  असत - काळा पैसा व पांढरा पैसा . काळा पैसा  ह्या  व्यक्तीना  विशेष  करून  आवडत  असे . अशा पैशांची काही नाणी स्वित्झर्लंडनामक देशातील उत्खननातही सापडली आहेत.
ह्यांची  अचाट  बुद्धिमत्ता  बघून  काही  लोकांचे  पोटशूळ  उठे . ही  मंडळी  मग  दाह  कमी होण्यासाठी  योगा शिकत . या  मंडळीनी  अशाच  एका  योगा  गुरुचे  कान  भरले  आणि  त्याने  भ्रष्ट  नेत्याविरुद्ध  आंदोलन  केले  अशी  आख्यायिका  आहे . तथापि  आंदोलन  म्हणजे  नेमके  काय  ते  अजून  समजू  शकलेले   नाही . त्याकाळी असंतुष्ट  लोक  आंदोलने  करीत . हुशार  असूनही  ज्यांची  कुठेच  डाळ  शिजली  नाही  अशा  मंडळींनी  सरकारच्या  नावाने  बोटे  मोडण्याची  त्या  काळी  प्रथा  होती . ही  मंडळी  त्यासाठी  सिविल  सोसायट्या  स्थापन  करीत . उत्खननात  अशा  लोकांची  नावे  पोत्यानी  सापडली  आहेत . उदा . शेषन*,मेधा, अरुंधती, किरण  बेदी*,हेगडे*  .... ( * -  सरकारी नोकरदारांनी हयातभर खाऊन-पिऊन निवृत्तीनंतर आंदोलने करावीत असा संकेत रूढ होता.)
पण  संबंधित  बाबा  हुशार  वा  असंतुष्ट  नसतानाही  आंदोलनात  का  पडले  हे  कळायला  मार्ग  नाही . काही  तज्ञांच्या  मते  या  बाबांचे  नाव  रामदेव  असून  , रामदेवलीला  मैदानाचे  नाव  त्यांच्याच  लीलांवरून  पडले  आहे . नाहीतर  आधी  या  मैदानाचे  नाव  फक्त  रामलीला  मैदान  असेच  होते .तथापि  यासंबंधीचे  पुरावे  अजून  हाती  लागलेले   नाहीत .
रामदेवबाबा  ही असामी  फारच गूढ   असावी . एकतर  योगा -बिगाचे  क्लासेस  चांगले  चालू  असताना  हा  बाबा  राजकारणाकडे  का  वळला  हे  कळायला  मार्ग  नाही . ( असे क्लासेस बंद करून राजकारणात येण्याची उदाहरणे त्याकाळी अधून-मधून आढळत. पहा- 'मनोहर जोशी आणि शिवसेनेचे वाटोळे' खंड- ५ वा) काही  तज्ञांच्या  मते  त्याकाळची  समाजाची  दुरवस्था  पाहून  बाबाच्या  पोटाला  पीळ  पडला आणि ते राजकारणाकडे वळले. ( असे  पोटाला  पीळ  पडलेले  बाबांचे  बरेच  फोटो  उत्खननात    सापडले  आहेत ),तर  काहीजणांच्या  मते  बाबा  रोजरोज  तेच  ते  कपालभाती ,भस्रिका , भ्रामरी  करून  वैतागले  आणि  "साला  जिंदगीत  काही  थ्रिल  नाही " म्हणून  झटक्याने  राजकारणात  शिरले .
काही  तज्ञांच्या    मते  तर  हे  बाबा  बाबा  नसून  मुळात  ती  एक  बाई  होती . कारण  बाबांचे  सलवार  कमीज नेसलेले  काही  फोटो  मैदानातील  उत्खननात  आढळले  आहेत .
बाबांना  बरेच  शत्रू  असावेत . बाबांच्या  खुनाच्या  बऱ्याच  कटांचे पुरावे  उत्खननात  हाती  आलेले  आहेत . त्यापैकी  ‘मार  देव  बाबा  ”ही  चिट्ठी  मुळात  ‘राम  देव  बाबा ’ अशी इंग्रजी भाषेतून  आहे  असे  एका  तज्ञाने  सांगितल्यानंतर  याबाबतचे  संशोधन जरा   थंडावले  आहे . त्याकाळी  मनमौजी  सिंग ( किंवा   मनमोहन  सिंग)  नावाचा  देशाचा  प्रधान  बाबाचा  द्वेष  करी . पण  बाबांचा  रोष  मात्र  सोनिया  नावाच्या  एका  बाईवर होता . "'ही  सोनिया  कोण'?  हे  इतिहासातले  क्लिओपात्रा नंतरचे   सर्वात  मोठे  गूढ कोडे   आहे"  असे  विधान   नुकतेच  भारतीय  प्राच्यविद्या  विभागाच्या  प्रमुखांनी  बुरुंडी  येथील  अधिवेशनात  केले .
प्राच्याशिरोमनी  तुं. बा. तुळपुळे  ह्यांच्या  मते  ही  बाई  देशाच्या  प्रधान  असलेल्या  मनमौजी  ( किंवा  मनमोहन ) सिंगाची  बायको  असावी . '"बायकोशिवाय  माणूस  दुसऱ्या  कुणासमोर  इतकी  हांजी  हांजी  कशाला  करेल ?"  हा तुळपुळे यांनी   मांडलेला  युक्तिवाद  बिनतोड  आहे . तथापि  त्याकाळचे  बहुतांशी  नेते  बाईला  वचकूनच  असत . याचे  कारण  काय  हे  अजून   उलगडलेले  नाही  . एकंदरीत  ही  बाई  सुद्धा  बाबाइतकीच   गूढ  होती .
बाबांचे  जसे  उघड  तसे  छुपे  शत्रुसुद्धा   बरेच  असावेत . बाबांचा  लपून  छपून तिरस्कार  करणाऱ्यांपैकीच    एक  अण्णा  हजारे  नामक  कुपोषित  व्यक्ती  होती  असा  शोध  नुकताच  प्राच्यविद्या  विद्यापीठातील  एका  विद्यार्ध्याने  लावला  आहे .  सुरुवातीला  हा  शोध  घेऊन  संबंधित  विद्यार्थी  विभागप्रमुखाकडे  गेला  असता    विभागप्रमुखांनी  त्याच्या  श्रीमुखात  भडकावली  आणि  "रामलीलाच्या  लढाईत   बाबा  आणि  अण्णा  खांद्याला  खांदा  लाऊन  लढले" असे  खडसावून  सुनावले . यावर   त्या  बाणेदार विद्यार्थ्याने  स्वतःच्या  समर्थनार्थ  राळेगण  सिद्धी  येथील  अवशेषात  सापडलेली  अन्नाची  ‘ Who Stole My Agenda?’ ह्या  अप्रकाशित  आत्मचरित्राची    प्रत  दाखवल्यावर  विभागप्रमुखांनी  आपल्या  मतांवर  पुनर्विचार  करायला  सुरुवात  केली  आहे .
त्याकाळी  'लोकपालाची  दंतकथा'  फार  लोकप्रिय होती.( हल्लीच्या काळी तिचे काही अवशेष  'लोकपाल आला रे आला' या बड्या वर्गात प्रिय असलेल्या लोककथेत आढळून येतात).  लोक  त्याला  देवदूत  मानीत . तो  प्रकट  झाला  म्हणजे  सगळी  पापे   नष्ट  होतील  अशी  त्याकाळच्या  लोकांची  धारणा  होती .  स्वतःच  निवडून  दिलेल्या  नेत्यांवर  या  लोकांचा  विश्वास  नसे . शिवाय हे  लोक  स्वतः  राजकारणात  जायला  घाबरत. असे  केल्याने   आपण  भ्रष्ट  होतो  असे  ते  मानीत . परंतु  काम  अडल्यावर  मात्र याच  भ्रष्ट  नेत्यांची  जी -हुजुरी  करायची  या  लोकांना  लाज  वाटत  नसे .वरतून  हेच  लोक  निवडणुकीत  नेत्यांकडून  पैसे  घेत . रोजच्या व्यवहारात हे लोक सर्रास चिरी-मिरी देत आणि घेत. आणि  हे  सगळे करून-सवरून  भ्रष्टाचाराच्या  नावाने   बोंबा  मारीत व  लोकपालाचा  धावा  करीत . स्वतःच पायंडा पाडलेल्या प्रणालीबद्दल या लोकांना आदर नव्हता.हे लोक क्रांतीची भाषा बोलत आणि निवडणुकीच्या दिवशी पिकनिकला जात. एकंदरीतच  स्वशासन  करण्यासाठी  हे  लोक  नालायक  होते. पुढे या व्यवस्थेचा अशाच अंगभूत दोषांमुळे ह्रास झाला. पुरातत्त्व खात्याच्या संशोधनामुळे अजूनही बऱ्याच बाबी समोर आल्या आहेत पण त्या सर्वच प्रकाशित करायची आम्हाला लाज वाटते. अशाप्रकारचे संशोधन चालू राहिल्यास चालू पिढीतला आपल्या पूर्वजान्बद्दलचा आदर कमी होऊन त्यांना आपल्या इतिहासाची लाज वाटेल व त्यांना आत्मग्लानी येईल म्हणून हे संशोधन तात्काळ थांबवण्यात आले आहे
                                                 आपले- 
                                                 प्राच्यविद्यामहिम  खं.दा.खंडोबल्लाळ                                                                                                                                                                                                                                     

9 comments:

  1. श्री. भालचंद्र नेमाडे व डॉक्टर भागवत खडके यांच्याकडून प्रेरणा घेऊन....

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  2. Excellent Article. Mastach lihile aahe. Mi hi yaach vishayavar ek article lihile aahe.

    you can read it at

    http://maalkauns.blogspot.com/2011/06/blog-post_10.html

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  3. mast sachin

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  4. extraordinary thinking. continue writing

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